आज के दौर में रिश्तों को लेकर समाज में कई तरह की मान्यताएं, सवाल और उलझनें हैं—खासतौर पर तब जब बात शादी, अफेयर और सहमति से बने शारीरिक संबंधों की हो। अक्सर यह चर्चा का विषय बनता है कि क्या सहमति से बना रिश्ता नैतिक और कानूनी रूप से सही होता है, खासकर अगर दोनों पार्टनर पहले से शादीशुदा हों?
इन्हीं सवालों के बीच कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है, जो न केवल कानूनी दृष्टि से बल्कि सामाजिक नजरिए से भी काफी चर्चा में है।
हाईकोर्ट का फैसला: “यह अपराध नहीं, आपसी सहमति का रिश्ता है”
मामला एक विवाहित महिला और विवाहित पुरुष के बीच चल रहे दो साल के अफेयर से जुड़ा है। महिला ने आरोप लगाया कि पुरुष ने शादी का झूठा वादा करके शारीरिक संबंध बनाए। जब उसके पति को इस अफेयर का पता चला, तो उसने महिला से रिश्ता खत्म कर दिया। इसके बाद महिला ने अपने प्रेमी से शादी की मांग की, लेकिन उसने इनकार कर दिया। नतीजतन महिला ने उसके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 69 और 351(2) के तहत मामला दर्ज कराया।
लेकिन कोर्ट ने यह मामला खारिज कर दिया।
जज की टिप्पणी: “यह सहमति से बना रिश्ता था, ना कि धोखा”
न्यायमूर्ति बिभास रंजन देब ने कहा कि दोनों व्यक्ति बालिग और विवाहित हैं, और उन्हें एक-दूसरे की पारिवारिक जिम्मेदारियों की पूरी जानकारी थी। इस आधार पर शारीरिक संबंध को सहमति पर आधारित माना गया, न कि धोखाधड़ी पर।
उन्होंने कहा, “ऐसे मैच्योर लोगों द्वारा की गई सहमति को धोखे या जबरदस्ती से गुमराह करना नहीं माना जा सकता। आकर्षण के आधार पर बना रिश्ता यदि आपसी सहमति से है, तो वह अपराध नहीं है।”
सहमति और शादी का सवाल
यह केस एक बार फिर इस मुद्दे को उठाता है कि शादी के बाद किसी और से रिश्ता बनाना कितना सही या गलत है, और क्या इसे अपराध की श्रेणी में रखा जा सकता है।
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कानूनन, अगर रिश्ता दो बालिगों की सहमति से बना है और उसमें किसी तरह की ज़बरदस्ती या धोखा नहीं है, तो उसे अपराध नहीं माना जा सकता।
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नैतिक तौर पर, समाज का एक बड़ा वर्ग इसे विवाहेत्तर संबंध मानता है, जो पारिवारिक जीवन को प्रभावित करता है।
हालांकि कोर्ट ने ये स्पष्ट कर दिया कि सहमति से बने रिश्तों को सिर्फ इस आधार पर अपराध नहीं ठहराया जा सकता कि उनमें शादी का वादा शामिल था, जब दोनों पार्टनर अपनी स्थिति से परिचित थे।
क्या कहती है BNS की धारा 69 और 351(2)?
लेकिन इन धाराओं का उपयोग तभी होता है जब सहमति धोखे या ज़बरदस्ती के प्रभाव में दी गई हो। इस केस में ऐसा कुछ भी साबित नहीं हुआ।
निष्कर्ष: रिश्ता वैध है या नहीं, यह संदर्भ पर निर्भर करता है
यह मामला न सिर्फ कानूनी रूप से अहम है, बल्कि समाज को भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हर विवाहेत्तर संबंध अनैतिक होता है? और क्या किसी भी सहमति से बने संबंध को केवल शादी के वादे के नाम पर अपराध कहा जा सकता है?
हाईकोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट होता है कि बालिगों के बीच आपसी सहमति से बना रिश्ता, जबरदस्ती या धोखा नहीं है, तो उसे अपराध नहीं माना जाएगा।
यह फैसला आधुनिक रिश्तों को लेकर समाज और कानून दोनों को नई दृष्टि से सोचने का मौका देता है।