चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सामुदायिक विवादों को अदालत से पहले निपटाने वाले मध्यस्थता अधिनियम 2023 के तहत सामुदायिक मध्यस्थता को लागू न किए जाने पर स्वतः संज्ञान लिया है। कोर्ट ने केंद्र, पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ प्रशासन से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि यह कानून समाज में शांति बनाए रखने और अदालतों का बोझ कम करने में मददगार साबित हो सकता है।
मुख्य न्यायाधीश शील नागू और न्यायमूर्ति सुमीत गोयल की बेंच ने कहा कि गांव और मोहल्लों में छोटे-छोटे विवादों को आपसी बातचीत से सुलझाया जा सकता है। अदालत ने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे खाप पंचायतें सामाजिक स्तर पर पहले से विवाद सुलझाती रही हैं, वैसे ही अब कानूनी रूप से सामुदायिक मध्यस्थता को अपनाया जा सकता है।
कोर्ट ने साफ किया कि मध्यस्थता अधिनियम 2023 की धारा 43 और 44 में सामुदायिक मध्यस्थता का स्पष्ट उल्लेख है, लेकिन यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है। यह कानून लोगों को अदालत की प्रक्रिया में उलझे बिना, कम खर्च और जल्दी समाधान का विकल्प देता है।
अब इस मामले में अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी। कोर्ट ने सभी पक्षों से विस्तृत जवाब मांगा है ताकि यह तय किया जा सके कि सामुदायिक स्तर पर विवादों को सुलझाने की इस प्रक्रिया को कैसे प्रभावी तरीके से लागू किया जाए।