चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: नगर निगम में बायो माइनिंग के काम को लेकर हुए फैसलों ने निगम को 4 से 5 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचा दिया है। पहले जो काम क्यूबिक मीटर के हिसाब से होता था, उसे इस बार दो खास कंपनियों को बल्क डेंसिटी के आधार पर दे दिया गया। दिलचस्प बात यह है कि बिना किसी टेंडर या फाइनेंशियल बीड के ही काम अलॉट कर दिया गया। पहले यही काम आकांक्षा एंटरप्राइजेज नाम की कंपनी कर रही थी और पेमेंट क्यूबिक मीटर के हिसाब से होता था, लेकिन इस बार बिना किसी वैज्ञानिक जांच के बल्क डेंसिटी .6 मान ली गई।
बल्क डेंसिटी .6 मानने का सीधा मतलब है कि टन के हिसाब से भुगतान करने पर प्रति टन रेट लगभग दोगुना हो जाता है। आकांक्षा एंटरप्राइजेज 511 रुपये प्रति क्यूबिक मीटर के रेट से काम करती थी, जो .6 डेंसिटी पर 851 रुपये प्रति टन पड़ता है। अगर असली डेंसिटी .9 या 1.0 हो, जैसा कि सूत्रों का कहना है, तो नगर निगम को 3 लाख टन तक कचरे का भुगतान करना पड़ेगा, जबकि अनुमान 1.5 लाख टन का था। इससे निगम को करोड़ों का नुकसान झेलना पड़ेगा।
असल में अगर काम को क्यूबिक मीटर के हिसाब से ही अलॉट किया जाता, तो रेट में कोई बड़ा अंतर नहीं आता और भुगतान भी अनुमानित दायरे में ही रहता। लेकिन बल्क डेंसिटी कम मानकर कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया। रेट का यह अंतर इतना बड़ा है कि निगम को भारी आर्थिक झटका लग सकता है। यह तय था कि काम शुरू करने से पहले मौके पर पड़े कचरे की असली डेंसिटी की जांच की जाती और उसी के आधार पर भुगतान तय होता।
इस पूरे मामले में निगम के इंजीनियरिंग विभाग की भूमिका सवालों के घेरे में है। सीनियर अफसरों की खामोशी और किसी भी स्तर पर जांच न होना यह दर्शाता है कि पूरा खेल आपसी मिलीभगत से हुआ है। पहले से आर्थिक संकट में चल रहे नगर निगम को इस लापरवाही और मिलीभगत ने और गहरे घाटे में डाल दिया है। अब यह ज़रूरी है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और जिम्मेदार अफसरों और कंपनियों पर कार्रवाई की जाए।