चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: देश के कानूनों में नाबालिगों के लिए नरमी बरतने का मकसद उन्हें सुधार का मौका देना है, लेकिन इसी का फायदा अब अपराधी उठाने लगे हैं। किशोर न्याय अधिनियम के तहत नाबालिगों को कम सजा और आसान बेल मिल जाती है, जिससे अपराधियों को लगने लगा है कि अगर बच्चों को आगे किया जाए तो वे कानून की पकड़ में भी आसानी से नहीं आएंगे। यही कारण है कि संगठित अपराधों में अब किशोरों का इस्तेमाल तेजी से बढ़ रहा है।
चंडीगढ़ में बीते पांच साल और चार महीने में 587 नाबालिग अपराधियों को गिरफ्तार किया गया, जिनमें से अधिकांश की उम्र 12 से 18 साल के बीच थी। 299 मामलों में आरोपी 16 से 18 साल के किशोर थे जबकि 281 की उम्र 12 से 16 साल के बीच थी। हैरानी की बात है कि इनमें से सिर्फ 7 आरोपी ऐसे थे जो 12 साल से कम उम्र के थे। ये आंकड़े बताते हैं कि गंभीर अपराधों में अब किशोर सीधे तौर पर शामिल हो रहे हैं।
पहले किशोरों को केवल जेबकतरी, स्नैचिंग या छोटी-मोटी मारपीट जैसे मामलों में गिरफ्तार किया जाता था, लेकिन अब हत्या के प्रयास, दुष्कर्म और गैंग वार जैसे गंभीर अपराधों में इनकी संलिप्तता बढ़ती जा रही है। पुलिस के अनुसार 2020 से अप्रैल 2025 तक हत्या के प्रयास के 64 मामलों में किशोर शामिल रहे, जिनमें सबसे ज्यादा 19 गिरफ्तारियां 2024 में हुईं। साल 2025 के पहले चार महीने में ही 13 किशोर इस जुर्म में पकड़े जा चुके हैं।
अपराध की दुनिया में कदम रख चुके कई किशोर बाल सुधार गृह में रहते हुए आपस में नेटवर्क बनाते हैं और रिहा होने के बाद संगठित होकर फिर से अपराध करने लगते हैं। पुलिस के मुताबिक बेल और सजा का डर न होने के कारण अपराधी उन्हें मोहरा बनाते हैं। आंकड़े बताते हैं कि चोरी, मारपीट और स्नैचिंग जैसे मामलों में सबसे ज्यादा किशोर पकड़े गए हैं—चोरी के 86, झपटमारी के 64 और झगड़े-मारपीट के 60 केस। अधिकतर वारदातों में चाकू, रॉड जैसे हथियारों का इस्तेमाल हुआ और अपराध गैंग रंजिश या बदले की भावना से जुड़े पाए गए।