चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: पानीपत के चर्चित डबल मर्डर केस में 22 साल बाद पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। वर्ष 2003 में दो साधुओं की हत्या के मामले में आरोपी बनाए गए राजीव नाथ को अदालत ने संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ पुख्ता और विश्वसनीय सबूत पेश नहीं कर सका। यह मामला पानीपत के चंदौली गांव में एक धार्मिक डेरे का था, जहां बाबा शिवनाथ और उनके शिष्य माया राम की निर्मम हत्या कर दी गई थी। दोनों के चेहरे तेजाब से झुलसे मिले थे।
पुलिस ने गांव के सरपंच और एक अन्य व्यक्ति के बयान के आधार पर राजीव को गिरफ्तार किया था। उनका दावा था कि राजीव ने हत्या की बात उन्हें बताई थी, क्योंकि वह डेरे की गद्दी का वारिस बनना चाहता था, जबकि बाबा शिवनाथ यह जिम्मेदारी अपने शिष्य माया राम को देना चाहते थे। इसी कथित कुबूलनामे के आधार पर 2004 में निचली अदालत ने राजीव को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। हालांकि हाईकोर्ट ने इस ‘अतिरिक्त न्यायिक स्वीकारोक्ति’ को कमजोर साक्ष्य मानते हुए कहा कि कोई व्यक्ति एक महीने बाद अचानक सरपंच को हत्या की बात क्यों बताएगा, यह संदेह पैदा करता है।
अदालत ने यह भी पाया कि ना तो कोई प्रत्यक्षदर्शी था, ना ही आरोपी को मृतकों के साथ आखिरी बार देखा गया था। पुलिस आरोपी से न तो हत्या में इस्तेमाल हथियार बरामद कर पाई और न ही तेजाब। फिंगरप्रिंट रिपोर्ट भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी। कोर्ट ने कहा कि यदि मामला पूरी तरह परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित हो, तो उन साक्ष्यों की कड़ी बेहद मजबूत होनी चाहिए, जो इस मामले में नहीं थी। इस आधार पर राजीव नाथ को दोषमुक्त करार देते हुए अदालत ने 22 साल पुराने इस हत्याकांड से बरी कर दिया।