चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक वाहन चोरी के मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए अहम टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बराड़ की अदालत ने कहा कि सिर्फ इस आधार पर जमानत का विरोध करना कि आरोपी खुद के खिलाफ गवाही देने से इनकार करता है, एक अनुचित परंपरा है, जिसे बिना सोचे-समझे जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
अदालत ने कहा कि राज्य की स्थिति रिपोर्ट में दावा किया गया है कि आरोपी ने जांच में सहयोग नहीं किया, क्योंकि उसने पूछताछ के दौरान सवालों का जवाब देने से इनकार कर दिया। इस पर अदालत ने कहा कि यह प्रवृत्ति गंभीर है, जहां पुलिस केवल इसलिए जमानत रद्द करने की मांग करती है कि आरोपी ने अपराध स्वीकार नहीं किया। जबकि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 20(3) किसी भी व्यक्ति को आत्म-दोषी बयान देने के लिए मजबूर किए जाने से सुरक्षा प्रदान करता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जांच के दौरान असहयोग का हवाला देकर आरोपी से जबरन बयान लेना प्राकृतिक न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के सिद्धांतों के खिलाफ है। जांच अधिकारी का कर्तव्य है कि वह हर तरह के मौखिक और दस्तावेजी सबूतों को इकट्ठा करे और सिर्फ आरोपी के बयान पर निर्भर न रहे।
अदालत ने मामले में आरोपी का पक्ष सुनते हुए कहा कि याचिकाकर्ता का पिछला आपराधिक रिकॉर्ड साफ है और उस पर लगे आरोपों के तहत अधिकतम सजा 7 साल है। इसी के आधार पर अदालत ने आरोपी को अग्रिम जमानत देने की अनुमति दे दी।