चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 98 साल के बुजुर्ग जगे राम को हत्या के बजाय गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराते हुए उनकी उम्रकैद की सजा को पांच साल के कठोर कारावास में बदल दिया है। यह मामला 2004 का है, जब रोहतक के एक गांव में हुए झगड़े के दौरान एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, विवाद के दौरान मृतक तालेराम को कई गंभीर चोटें आई थीं, जिनमें से एक जानलेवा साबित हुई। इस मामले में तीन लोगों को दोषी ठहराया गया था। जस्टिस गुरविंदर सिंह गिल और जस्टिस जसजीत सिंह बेदी की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि घटना के समय जगे राम 77 साल के थे और लाठी का सहारा लेकर चलते थे। अदालत ने माना कि बुजुर्ग व्यक्ति के लिए लाठी सहारे का माध्यम है, न कि हमला करने का हथियार। जगे राम ने केवल एक वार किया था और इसके बाद दोबारा हमला नहीं किया।
कोर्ट ने अभियोजन पक्ष के दावों पर सवाल उठाते हुए कहा कि जगे राम की मंशा हत्या करने की नहीं थी, लेकिन उन्हें इस बात की जानकारी थी कि उनके वार से किसी की जान जा सकती है। अदालत ने इस मामले में सह आरोपी राजेश को बरी कर दिया, क्योंकि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयान विरोधाभासी पाए गए। मृतक के बेटे ने भी राजेश की भूमिका को लेकर अलग-अलग समय पर अलग-अलग बयान दिए, जिससे यह साबित नहीं हो सका कि राजेश ने घातक हमला किया था।
अदालत ने जगे राम की उम्र और उनकी कमजोर शारीरिक स्थिति को देखते हुए नरमी बरती और उम्रकैद की सजा को घटाकर पांच साल की कठोर कारावास की सजा दी। जगे राम पहले ही 14 महीने की सजा काट चुके हैं, जिसे उनकी कुल सजा से घटा दिया जाएगा। हाईकोर्ट ने साफ किया कि बुजुर्गों के मामले में लाठी को हथियार के रूप में नहीं देखा जा सकता, क्योंकि वे इसे सहारे के लिए इस्तेमाल करते हैं।