चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (जीएमसीएच-32) में डिलीवरी का ट्रेंड चौंकाने वाला है। यहां हर महीने होने वाली डिलीवरी में आधे से ज्यादा केस सिजेरियन होते हैं। जबकि जीएमएसएच-16 और बाकी सिविल अस्पतालों की तुलना में यहां नॉर्मल डिलीवरी बेहद कम हो रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि केवल 10-25 फीसदी मामलों में ही सी-सेक्शन जरूरी होता है, लेकिन जीएमसीएच में यह आंकड़ा लगातार ज्यादा बना हुआ है।
आरटीआई से मिले आंकड़ों के मुताबिक, 2021 से 2024 के बीच जीएमसीएच में हर महीने सिजेरियन डिलीवरी का प्रतिशत सामान्य से कहीं अधिक रहा। हैरानी की बात यह है कि खुद अस्पताल प्रशासन के पास इसका कोई साफ जवाब नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है। आरटीआई एक्टिविस्ट आरके गर्ग ने इसे गंभीर मामला बताते हुए स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन से हस्तक्षेप की मांग की है।
आईआईटी मद्रास की स्टडी और बीएमसी प्रेग्नेंसी एंड चाइल्डबर्थ जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बीते कुछ वर्षों में भारत में सिजेरियन डिलीवरी के मामले तेजी से बढ़े हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि डॉक्टर कई बार अपनी सुविधा के लिए सी-सेक्शन को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि वजाइनल डिलीवरी में समय और अनिश्चितता ज्यादा होती है। यही कारण है कि अब कुछ निजी अस्पताल सी-सेक्शन और नॉर्मल डिलीवरी का शुल्क समान करने लगे हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, सी-सेक्शन डिलीवरी सिर्फ तब की जानी चाहिए जब मां या बच्चे की जान को खतरा हो। अन्यथा यह विकल्प कई जोखिमों के साथ आता है—जैसे मां में संक्रमण, अधिक रक्तस्राव, बच्चे को सांस की दिक्कत और भविष्य में एलर्जी या अस्थमा का खतरा। सिजेरियन एक मेडिकल जरूरत होनी चाहिए, न कि सुविधा या सामाजिक कारणों से लिया गया फैसला।