चंडीगढ़ न्यूज डेस्क: केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने चंडीगढ़ की दो बड़ी कंपनियों, बर्कले रियलटेक लिमिटेड और गोदरेज एस्टेट डेवलपर्स, के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की है। इन पर आरोप है कि इन्होंने इंडस्ट्रियल एरिया फेज-1 में बड़े प्रोजेक्ट तो बना लिए, लेकिन पर्यावरण और वन्यजीव मंजूरी (एनवायरनमेंट और वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस) नहीं ली। जबकि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की 2006 की अधिसूचना के अनुसार, 20 हजार वर्ग मीटर से बड़े प्रोजेक्ट के लिए ये मंजूरी जरूरी थी। इसी मामले में एस्टेट ऑफिस के अज्ञात अधिकारियों की भूमिका भी संदिग्ध है। CBI ने इन सभी के खिलाफ IPC की धारा 420, 120B और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत केस दर्ज कर लिया है।
इस पूरे मामले में एस्टेट ऑफिस के अधिकारियों पर भी सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि उन्होंने इन कंपनियों की अनदेखी की, प्रोजेक्ट बनने दिए और यहां तक कि इन्हें ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट भी जारी कर दिया। जब पंजाब के गवर्नर और यूटी के प्रशासक को इस गड़बड़ी की जानकारी मिली, तो उनके कार्यालय से CBI को शिकायत भेजी गई। इसके बाद पंजाब राजभवन के अंडर सेक्रेटरी भीमसेन गर्ग की शिकायत पर CBI ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
CBI की शुरुआती जांच में साफ हो गया है कि दोनों कंपनियों ने बिना जरूरी मंजूरी के निर्माण कार्य पूरा कर लिया और एस्टेट ऑफिस के अधिकारी इस लापरवाही पर चुप रहे। अब इस मामले में एस्टेट ऑफिस के कई बड़े अधिकारी भी जांच के घेरे में आ सकते हैं। CBI इस पूरे प्रकरण की गहराई से पड़ताल कर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि किसकी मिलीभगत से ये अनियमितताएं हुईं।
ऐसे की गई गड़बड़ी
CBI जांच में सामने आया है कि बर्कले रियलटेक लिमिटेड और गोदरेज एस्टेट डेवलपर्स ने अपने प्रोजेक्ट्स के लिए जरूरी मंजूरी लेने में हेराफेरी की। बर्कले रियलटेक ने अपने प्रोजेक्ट बर्कले स्क्वायर के लिए 12 अगस्त 2014 को वन्यजीव मंजूरी का आवेदन किया, जबकि उस समय चंडीगढ़ की सुखना वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी और सेक्टर-21 की बर्ड सेंक्चुरी का इको-सेंसिटिव जोन 10 किमी था। कंपनी ने अपना प्रोजेक्ट पूरा करने के बाद मंजूरी के लिए आवेदन किया, ताकि निर्माण में कोई रुकावट न आए। इसी तरह, गोदरेज एस्टेट डेवलपर्स ने गोदरेज इटर्निया प्रोजेक्ट के लिए 7 नवंबर 2014 को आवेदन किया। जब वन विभाग की टीम ने निरीक्षण किया, तो पाया कि दोनों प्रोजेक्ट्स सेंक्चुरी से काफी करीब थे और इनके लिए एनवायरनमेंट और वाइल्डलाइफ क्लीयरेंस जरूरी थी, लेकिन कंपनियों ने यह मंजूरी ली ही नहीं।
अधिकारियों की मिलीभगत से मिला फायदा
CBI की जांच में यह भी सामने आया कि एस्टेट ऑफिस के कुछ अधिकारियों ने इन कंपनियों को नियमों के उल्लंघन के बावजूद ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (OC) जारी कर दिया। बर्कले स्क्वायर को 29 अप्रैल 2016 और गोदरेज इटर्निया को 9 जून 2015 को OC दे दिया गया, जिससे कंपनियों को कानूनी वैधता मिल गई। अधिकारियों की इस लापरवाही के चलते पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी की गई और कंपनियों को अवैध रूप से प्रोजेक्ट पूरे करने का रास्ता मिल गया।
CBI और प्रशासन ने लिया एक्शन
जब यह मामला पर्यावरण मंत्रालय तक पहुंचा, तो मंत्रालय ने 4 अप्रैल 2024 को यूटी प्रशासन को पत्र जारी किया और स्पष्ट किया कि 2017 से पहले बिना वन्यजीव संरक्षण मंजूरी के हुए सभी निर्माण अवैध हैं। इस आदेश के बाद चंडीगढ़ प्रशासन ने तुरंत एक्शन लेते हुए दोनों कंपनियों के ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट रद्द कर दिए। वहीं, CBI ने भी अपनी जांच तेज कर दी और आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज कर लिया है। अब इस मामले में शामिल अधिकारियों की भूमिका भी जांच के दायरे में है।